Article 13 के अनुसार सविंधान बनने से पहले या सविंधान बनने के बाद ऐसा कोई कानून भारत में नहीं हो सकता है जो दूसरे के मौलिक अधिकारो ठेस पहुंचाता हो
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आर्टिकल 13 एक फ़िल्टर की तरह काम करता है ये उन कानूनों को शून्य कर देता है जो किसी व्यक्ति समूह या किसी जाती के Fundamental Rights का हनन करता हो
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Article 13 संसद ओर विधानसभा को भी ऐसे नए कानून बनाने पर प्रतिबंध लगता है जिस से की किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों में कटौती हो या उन्हें इन से वंचित करता हो
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यह आर्टिकल न्यालयों और उच्च न्यालयों को ये अधिकार देता है की वो सभी पुराने कानूनों की समीक्षा करे और ये पता लगाएं की पुराने कानून वर्तमान सविंधान के अनुसार है या नहीं
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अगर न्यालयों को समीक्षा करने पर कोई ऐसा कानून मिलता है जो की किसी के मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा हो या अब के न्याय सहिंता के अनुसार न हो तो उस कानून का संसोधन किया जायेगा
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Article 13 में "विधि" की परिभाषा के अंतर्गत कोई भी अध्यादेश, आदेश, उप-कानून, नियम, विनियमन, अधिसूचना, प्रथा या प्रथा शामिल है जो कानून का प्राधिकार रखती हो
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आर्टिकल 13 न्यायिक समीक्षा के दायरे को व्यापक बनाता है। विधायी क्षमता से संबंधित मामलों के लिए भारतीय न्यायपालिका से भी संपर्क किया जा सकता है